ईश्वर के सम्मुख मानव के केवल दो ही समूह हैं । इसके अतिरिक्त जितने भी समूह हैं वह मानव निर्मित और मानव के सम्मुख हैं।
" क्या मैं एक बात आपसे पूछूं ? " एक सज्जन ने मुझ से संकोच करते हुए पूछा । वह मेरे पास अपने बच्चे का इंटर में प्रवेश दिलाने के संबंध में आए हुए थे ।
बिल्कुल , आप बेझिझक पूछ सकते हैं।
" आप वहाबी हैं या सुन्नी ...? उन्होंने पूछा ।
मैं न वहाबी हूं न ही सुनी । यह मेरा उत्तर था ।
वह सोच में पड़ गए । यह कैसे हो सकता है कि एक मुसलमान न तो वहाबी न ही सुन्नी ....?
हां , हो सकता है ।
मैंने उनके उलझन को दूर करते हुए बोला ।
इस संसार का रचयिता तो एक ही है और वह ईश्वर है । उसने इस दुनिया को बनाया और इसको हर तरह से सुसज्जित किया और जीवन बिताने के लिए हर आवश्यक चीजों को पैदा किया फिर उसने मानव को पैदा किया और इस धरती पर भेजा ताकि वह यह जांच सके कि कौन अच्छा कर्म करने वाला है... और कौन बुरा।
उन्होंने बीच में एक प्रश्न कर दिया ।
तो क्या ईश्वर ने मानव को यह बताया है कि अच्छा क्या है बुरा क्या है ?
हां , बताया है ।
ईश्वर ने मानव की मार्गदर्शन के लिए कई प्रबंध किए हैं । एक तो यह कि प्रत्येक मानव के भीतर अंतरात्मा रखा जो प्रत्येक मानव को चाहे पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ उस व्यक्ति को किसी काम करने के समय अंतरात्मा आवाज देती है कि अमुक कार्य अच्छा है या खराब । उसे करना चाहिए या नहीं ।
दूसरा यह कि ईश्वर ने मानव ही में से किसी मानव को अपना दूत चुनकर उस पर अपना आदेश अवतरित किया । ऐसा प्रबंध उसने मानव के धरती पर भेजने के साथ ही किया और समय-समय पर हर क्षेत्र और हर भाषा में अपने दूत को भेजा और वे ईश्वर का आदेश मानव को पहुंचाते रहे।
" फिर क्या हुआ ? " उन्होंने पूछा ।
फिर यह हुआ कि कुछ मानव ने उनकी बात को मान लिया और बहुतों ने इंकार कर दिया।
ईश्वर ने सभी मानव को एक समान बनाया । परंतु अब इस मानव में से जिसने भी उनके आदेश को मानकर आज्ञा का पालन किया वह मानव , ईश्वर का आज्ञाकारी कहलाया । और जिसने उनके आज्ञा का पालन नहीं किया वह ईश्वर का अवाज्ञाकरी कहलाया ।
ईश्वर के सम्मुख मानव की यही दो समूह हैं । इसके अतिरिक्त मानव के जितने भी समूह है वे मानव निर्मित और मानव के सम्मुख है।
तो आप क्या हैं ? मेरे प्रश्न का तो उत्तर ही नहीं दिया ।
उसी का तो उत्तर दे रहा हूं । मैंने कहा अभी मैंने बताया कि ईश्वर के समक्ष मानव के केवल दो ही समूह हैं । एक ईश्वर का आज्ञाकारी और दूसरा ईश्वर का अवज्ञा कारी।
मैं उसके दूत का जो कि अंतिम दूत हजरत मोहम्मद ( आप पर सलातो सलाम हो ) हैं । उनकी बातों को मानकर ईश्वर का आज्ञाकारी बनने का प्रयत्न करता हूं । ईश्वर का आज्ञाकारी इसी को अरबी भाषा में मुस्लिम कहा जाता है इसलिए मैं अपने को मुस्लिम कहता है।